Sunday, 22 July 2012

sihran

सिहरन 

शाम के धुंधलके में जब,
घर से बाहर निकलता हूँ ;
देखता हूँ सड़क किनारे,
चीथड़ों में सिमटी हुई साँसें ;
माँ के आँचल से झाँकतीं,
वो खामोश ऑंखें,
ताकतीं हैं मेरी ओर ;
मौन हैं पर,
चुभो देतीं हैं हज़ारों नश्तर 
उन सवालों के,
जो साथ आये थे लिपटे हुए उसके,
माँ के पेट से ही ;
रोंगटे खड़े होने लगते हैं मेरे, और 
सिहर के जब फेर लेता हूँ,
अपनी आँखें सड़क के दूसरी ओर,
नज़र आता है जीवन .....
अपने पिता की उंगली थामे हुए,
 वो नन्हा फ़रिश्ता ;
आइसक्रीम की चुस्कियां लेता हुआ,
कितना सुकून देता है मन को ;
अपने मन को समझाता हूँ,
जीवन यही है, सच यही है ;
पीछे जो देखा वो,
है उसकी करनी का फल ;
और ये सब सोच कर बन जाता हूँ अनजान,
ये जानते हुए भी कि 
मेरी पीठ पर अब भी चुभ रहीं हैं,
उस मासूम की प्यासी आँखें ;
और, भूल जाता हूँ कि 
रोंगटे अभी भी खड़े हैं हैं मेरे ......


- डा. शिव शर्मा 

Monday, 2 July 2012

कौन हूँ मैं ?

जो बीत गया उस  कल  की परछाईं हूँ ,
जो आएगा उस कल की अंतहीन गहराई हूँ मैं  ;

अंतर्मन की अनसुनी पुकार हूँ ,
कुंठित, बेबस और लाचार हूँ मैं ;

निराशा के भंवर में डूबती उतराती नाव हूँ,
बूढ़े माँ बाप की पथराई आँखों का ठहराव हूँ मैं  ;

अनजान सड़क पर भटका हुआ राही हूँ ,
अतीत के पन्नों पर फैली काली स्याही हूँ मैं ;

जो पल में बीत गया वो बचपन हूँ ,
अंतर्द्वंदों में सिमटी अनसुनी घुटन हूँ मैं  ;

अकल्पनीय, अवर्णनीय, असहनीय दर्द हूँ,
ग़रीब और लाचार के लिये  मौसम सर्द हूँ मैं ;

यूँ तो ठोकरें बहुत खायीं हैं मैंने ,
पर दोस्तों, रास्ते का पत्थर  नहीं हूँ  मैं ;

कौन हूँ मैं ?...........